रिश्तों ने रंग बदला 
तो रंगो के रंग उड़ गये I
जो रगों में दौड़ता था 
वो सफ़ेद हो गया,
और जो सफ़ेद था 
उसमें रंग आ गये …
रंग मुबारक 

www.yatishjain.com

तुम समीर बन आए 
जल से मिलाये,
मै क्या कहूँ
समझ नहीं आता।

तुम भी जल
मै भी जल,
तुम नदी बन
समंदर में मिल गए; 
मै अभी बह रहा हूँ, 
इंतज़ार करना 
जल्द मिलूँगा …
– यतीष जैन
www.yatishjain.com
www.qatraqatra.yatishjain.com
www.kangen.yatishjain.com

Kshamavani क्षमावाणी

रिश्तों में एहसास की गर्मी है 
तो रिश्ता जिन्दा है।
रिश्तों में आखों की शर्म है 
तो रिश्ता जिन्दा है।
रिश्तों में आपस की कदर है 
तो रिश्ता जिंदा है। 

पर आज रिश्तों में 
हिसाब आ गया है। 
आज रिश्तों में 
खिचाव आ गया है। 

जिंदगी अब भावों से नहीं 
भाव से चलती है 
जिंदगी की ट्रेन हर मोड़ पर 
पटरी बदलती है। 

आखों के पास का रिश्ता 
अब नज़र नहीं आता 
आखो से दूर है जो रिश्ता 
वही है भाता 

जिंदगी अब 
खेल हो गयी है,
रिश्तों की अहमियत 
बेमेल हो गयी है, 
कुछ कहा सुना हो 
माफ़ करना .
अपने मन मे मेरे लिए 
कुछ ना रखना ,
अपने से अपने को 
पहचान लो। 

जीवन मे वही होता है 
जो लिखा होता है ,
लिखने वाला भी कोई 
खुदा नहीं होता है ।
जिनवाणी में लिखा है,
तू खुदी का खुदा है। 
फिर तू क्यों 
दुसरों  से खफा है ।

जैसा करे है वैसा भरे है 
आने वाले समय से क्यों डरे है,
तेरा बोया तू खुद कटेगा ,
तेरा दुःख कोई नहीं बांटेगा। 
संभल जा। … 

तू अकेला है 
और अकेला ही रहेगा। 
तो डरना कैसा, सच बोल 
तेरी बात से ही है तेरा मोल। 

किसी का कुछ है मुझपर 
तो मांग लेना।

समय बलवान है सब दर्ज होता है 
अपने करे पर ही इंसान रोता है ।
पुराना हिसाब है जो, वो ख़त्म करता हूँ ,
गिले शिकवों का कर्ज भरता हूँ 

अब आगे का जिम्मेदार खुद बनता हूँ 
सबसे क्षमा सबको क्षमा करता हूँ ।

उत्तम क्षमा
मिच्छामि दुक्कडम 

— यतीष जैन 
www.yatishjain.com
www.qatraqatra.yatishjain.com

आइना

सामने मेरे वो है जो दिखता मेरे जैसा है,
मेरी आदतों में भी वो मेरे जैसा है.

वो हसीन है उम्मीदों से घिरा हुआ
सपनो से है उसका दिल भरा हुआ,
मै उसकी हर बात का क़ायल सा हो गया हूँ,
मै आज उसका आइना सा हो गया हूँ.

उसकी उड़ान आसमानो से परे है
उसके ख़ाब बदलो से घिरे है ,
मै उसके साथ हवा में खो गया हूँ,
मै आज उसका आइना सा हो गया हूँ .

उसकी आँखों में कई मंज़िले झलकती है
उसकी माथे की लाइनें रास्ते सी दिखती है,
मै उसके सफ़र में साथी सा हो गया हूँ
मै आज उसका आइना सा हो गया हूँ .

वो जहां भी जाता है वहाँ रास्ता बन जाता है
वो जहां भी रुकता है वो ही मुक़ाम हो जाता है ,
मै उसका मील का पत्थर सा हो गया हूँ,
मै आज उसका आइना सा हो गया हूँ .

वो जो बोले तो महफ़िल में समा बंध जाता है
उसके होंठों से जो झरे वो अम्रत हो जाता है,
मै उसकी वाणी का सानी सा हो गया हूँ ,
मै आज उसका आइना सा हो गया हूँ.

www.yatishjain.com
धन्यवाद भगवान, धन्यवाद कायनात

मै हूँ क्रतज्ञ इस बेला का जिससे दिन की शुरुआत हुई,
मेरे जीवन में ख़ुशियो की बहुतायता की बरसात हुई।

मैं हूँ कृतज्ञ इस श्रस्टी का जिसने मुझे माता पिता दिए ,
मेरी इक्छाओँ की पूर्ती के लिए उन्होंने जीवनभर काम किये।

मैं हूँ कृतज्ञ उन गुरुओ का जिन्होंने हमको ज्ञान दिया,
उन सभी शिक्छण संस्थानों का जिनपर हमने अभिमान किया.

मैं हूँ कृतज्ञ भाई बहनों का जिन्होंने इतना प्यार दिया,
जीवन के सुख दुःख में मेरे हरदम मेरा साथ दिया।

मैं हूँ कृतज्ञ अपनी पत्नी का जिससे मेरी परिपूर्णता है ,
सुख दुःख में उसने साथ दिया जिसमे मेरी सम्पूर्णता है।

मैं हूँ कृतज्ञ अपने बच्चो का जिसने हमको सौभाग्य दिया,
अपनी ममता पर नाज करे ऐसा हमको मान दिया। 

मैं हूँ कृतज्ञ उन दोस्तों का जो हर हरदम साथ निभाते 
हर मुश्किल हर विपदा में बिन बुलाये आ जाते है। 

मैं हूँ कृतज्ञ उस समाज का जो हमको आश्रय देता है ,
अपने होने के वजूद से सारी चिंता हर लेता है।

मैं हूँ कृतज्ञ इस धरती का सूरज चंदा इस अम्बर का,
जिनके होने से प्रकृति में ऋतुओ का संचार हुआ।

मैं हूँ कृतज्ञ किसानो का ग्वालों का जो हमको भोजन देते है,
उन ट्रांसपोटरों का दुकानदारों का जिनसे हम ये सब लेते है।

मैं हूँ कृतज्ञ डॉक्टरों का स्वस्थ कर्मचारियों का हॉस्पिटल है जो हमको सेवा देते है,
उन दवा कंपनियों का, उपकरणों का जो हरदम तत्पर रहते है।

मैं हूँ कृतज्ञ पुलिस का सेना का सिक्योरिटी सिस्टम का जो हमको सुरक्छा देते है,
उनकी दिन रात की मेहनत से हम चैन की नींद सोते है।

मैं हूँ कृतज्ञ रिक्शा बस ट्रेन जहाजों का जो यातायात सुगम बनाते है
जिनकी दिनरात की तत्परता से हम कही भी आते जाते है।

मैं हूँ कृतज्ञ उन जाने अनजाने श्रोतो का जिससे मैं खुशहाल हुआ,
जिसने मेरी सम्पन्नता मैं अपना हर योगदान दिया।

मैं हूँ कृतज्ञ इस ग्रुप के हर मेंबर है जो सबको दुआए देता है,
हर परिस्थिति में प्रेयर करके सबके दुःख हर लेता है।

मैं हूँ कृतज्ञ मोनिका जी का जो हरदम राह दिखाती है,
मुझमेँ हीँ मेरी शक्ति का हर पल ध्यान कराती है।

मैं हूँ कृतज्ञ अपनी छमा का जो सबको छमा करता है,
और है विनती सबसे हाथ जोड़ की वो भी मुझको छमा करें।

धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद
धन्यवाद भगवान, धन्यवाद कायनात 


कुछ इसतरह से शुरू हुई एक यात्रा,
जादू से लबालब 
लबों पे सपने सजाये
खुशियों की फुलझड़ी छोड़ती . 

संगी साथी भी बहुत है 
जो घोलते है हवाओं में 
एक जादुई अनुभव,
एक कहानी दूसरे के लिए 
बन जाती है जुबानी,
और फिर जन्म लेती है 
रोज एक कहानी। 

कहानी ग्रेटिटूड की 
कहानी ब्लेसिंग्स की 
कहानी सपनों को पूरा करने की .

ये यात्रा नहीं 
ये है ना रुकने वाली 
“महायात्रा” 
इरादों की … 
वादों की …. 
यात्रा जादू की। 

जादू था जीवन में 
पर भूल गए थे,
रोमांच भी था 
कहीं खो गया था.
फिर मन के किसी कोने से 
एक आवाज़ आयी,
थैंक यू थैंक यू थैंक यू कहती 
सामने स्क्रीन पर मोनिका आयी
साथ में आशाओं का जादू लायी। 

सबसे पहले मुझसे 
मेरी मुलाकात हो गयी,
जो धूल चढ़ी थी शीशे पर 
थैंक यू की बारिश से धुल गयी। 

दूसरा सपनों के बादल 
मडराने लगे 
कुछ जादू के रूप में 
सामने आने लगे। 

तीसरा पंखों में उड़ान की 
पावर आ गयी ,
कुछ ऐसा स्प्रिंकल किया 
इस जर्नी ने 
मोनिका सब पर छा गयी। 
Thank you Thank you Thank you

Visit DivineBlessings for MAGIC

Dr Kailash Kumar Mishra

कविता के तुम भाई हो
लेखों के तुम साँई हो,
गर खड़े हो गए मंच पर
तो समारोह के नाई हो।
वाद विवाद की दाई हो
ज्ञान का सागर हो
कला की गागर हो।

नाम तुम्हारा है कैलाश
वाणी मैं है मिश्री का वास,
एक बार जब मिले किसी से
बना देते वो लम्हा खास।

खैरियत जानने के लिए पहले
लिखते थे ख़त,
फिर दौर आया फ़ोन का
ट्रंकाल लगाया करते थे।
आज बात चीत करना सरल है
पर हम,
चैट मे online स्टेटस देख
तसल्ली दे लेते है मन को
की सब कुछ ठीक है।
वक़्त वक़्त की बात है,
एक वक़्त था कि लैंडलाइन फोन थे,
किसी से बात करने के लिए
घर या ऑफिस की जरुरत पड़ती थी।
आज वक़्त बेवक़्त भी कही से
किसी से भी बात कर सकते है।
रिश्ते दूर दूर हुआ करते थे
पर चिट्ठियां और एसटीडी काल
उन्हें पास ला दिया करते थे।
जो मजा उन कागज की चिट्ठियों में था
वो आज की ईमेल में कहाँ है?
जो घंटो इंतजार के बाद ट्रंकाल काल में था
वो आज के इंस्टेंट काल में कहाँ।
जब कही जाते थे तो सात दिन में
पोस्टकार्ड से पहुचने की खबर पहुचती थी
वो सात दिनों मे भरोसा होता था।
पर आज कही जाते है तो सात काल हो जाते है
इंतजार अब खबर बन गया है।
उस वक़्त दूरियों में
नजदीकियां बसती थी,
और आज हम नजदीक होकर भी
दूर हो गए है।
कहते है साइंस ने बहुत तरक्की की है
दुनिया को पास लादिया है
अगर इसे ही पास लाना कहते है
तो वो दूरियां ही अच्छी थी।
सात दिन लगते थे,
पर अपने, अपने लगते थे।

© 2020-2024 Qatra-Qatra क़तरा-क़तरा All Rights Reserved -- Copyright notice by Blog Copyright