चाह कितनी तेज होती है
ना चेहरा देखा
ना बात की ,
पढ़ा कुछ अल्फाजों को
और छू गए दिल को,
एक लम्बी सॉँस ली
और सारा बदन सिहर गया.

ऐसा ही होता है
शब्दों का जादू
अच्छे लगे तो
सबकुछ अच्छा लगता है
बिन देखे
बिन जाने

आज कोई ख्वाब टूटा है कही
कही न कहीं सबके ख्वाब टूटते है
पर मन का इकतारा
बजाता रहता है एक धुन
बार बार जुड़ने की.
ये धुन कभी बंद नहीं होती
हम ही इकतारे के
दिए की  तरह
मिल जाते है मिट्टी मे
पर ये तार ख्वाबो के
जुड़े रहते है कही न कही
आज हम से कल किसी और से …

रोज नए रंग में मिलती है ज़िन्दगी
रोज रिश्ते नए रंग दिखाते है,
मेलजोल भाईचारा
सब रंगों में ही तो रमे है
रोज रंगते है हम
इन रंगों में,
रोज नए ढंग से
रंगती है जिंदगी
रोज एक होली होती है …

बाजू में बंधी कुछ दुआएं
और हाथों में झूलती
कुछ उलझी हुयी सी
रंग बिरंगी कश्मकसें
कुछ कह रही थी आज,
बना रही यही
अपने अतीत की तस्वीरें
वर्तमान के केनवाश पर.

लाइने  खिचने लगी
और बनगया
एक स्टोर रूम,
जिसमें थे नक्कासी किये
यादों के संदूक,
उजले-उजले से
कुछ आईने और
सुर्ख सफ़ेद पोशाकें.

वो बतियाती खिलखिलाती
और बस खो जाती
जैसे फरिश्तों के देश मे
एक नन्ही परी,
वो कमरा जैसे कमरा नहीं
एक सपनों की दुनिया हो
उजली सी,

वक्त गुजरा
देश छूटा
रूह से ज़ुदा हो गयी ज़िन्दगी,
बड़े-बड़े खुले से वीराने ;
ढूढने लगी अपनी ही पहचान,
ना कोई आइना, न कोई संदूक
बस मीलों दूर
सफ़ेद ही सफ़ेद
बिखरे हुए शून्य.

समय की सुई फिर आयी
अपनी जगह
लगा जैसे नया युग
फिर शुरू हुआ है,
ढूढने लगी उन नाजुक
नक्काशी भरे पलों को
की तभी पहचान लिया
किसी ने उसे
थामे हाथों में
कुछ बीते दिनों के
जिंदा एहसास.

वो मिली उससे तो
महक गया
एक आइना अतीत का
और खुलगया एक संदूक
एहसासों का,
जैसे सुबह की की दहलीज़ पर
सूरज की पहली किरण
जैसे पहली बारिश मे
भीगा बदन.

वो आज भी ढूढती है
उन बंद दरवाजों मे
घूमते फ़रिश्ते,
वो आज भी कैद है
उन चार दीवारों मे
बतियायी हुई सी.

जिस्म जवाँ होगया है मगर,
मन अभी भी है मुन्नी सा…

एक बात अजब सी है रौशन ऐ जिंदगी में
ये चलती रफ़्ता रफ़्ता पर तेज़ सी दिखती है

आते है पड़ाव इतने पर रुकते कहाँ है हम
कुछ छूट सा जाता है हम जोड़ते रहते है
हर राह पे मुश्किल कुछ तनहा सी मिलती है
ये चलती रफ़्ता रफ़्ता पर तेज़ सी दिखती है

मोहताज़ है हम कितने इस वक्त के आईने में
हमको हम ही दिखाते है हम देखते रहते है
धुंधली सी कही इसमे उम्मीद सी खिलती है
ये चलती रफ़्ता रफ़्ता पर तेज़ सी दिखती है

खुशियों के ख्वाब से ही अँधेरा भी रौशन है
उम्मीद के बिछोने में सब जागते रहते है
ख्वाबों की एक दुनिया दिन मे भी तो सजती है
ये चलती रफ़्ता रफ़्ता पर तेज़ सी दिखती है

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diwali2007_yatishjain

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