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चित्र: नमन, देवीप्रसाद
एक माटी
एक कुम्हार
एक रचना
एक रचनाकार,
वक्त की धुरी पे घूमे
न जाने कितनी बार
ना कोई पड़ाव
ना कोई ठहराव
चलता गया
करता रहा सृजन.

सकोरे मे न समाजाये
बना शिल्पकार
दिया कई कुम्हारों को आकार
आज भी अपनी धुरी पे
ना है थमने को तैयार.

एक सृजन को
एक धुरी को
एक चाक को
नमन है नमन है नमन है
बार बार ….

4 Responses to “नमन”

  1. Umesh Batra Says:

    Guru Naman…

  2. मीनाक्षी Says:

    गुरु बिन गति नाहिं… गुरु को नतमस्तक प्रणाम !

  3. Amit Sharma Says:

    एक कलाकार का दुसरे कलाकार को बहुत ही सुन्दर नमन …

  4. Urmi Says:

    बहुत सुन्दर नमन! उम्दा प्रस्तुती!

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