May 06
चित्र: नमन, देवीप्रसाद
एक माटी
एक कुम्हार
एक रचना
एक रचनाकार,
वक्त की धुरी पे घूमे
न जाने कितनी बार
ना कोई पड़ाव
ना कोई ठहराव
चलता गया
करता रहा सृजन.
सकोरे मे न समाजाये
बना शिल्पकार
दिया कई कुम्हारों को आकार
आज भी अपनी धुरी पे
ना है थमने को तैयार.
एक सृजन को
एक धुरी को
एक चाक को
नमन है नमन है नमन है
बार बार ….
May 7th, 2010 at 2:07 pm
Guru Naman…
May 7th, 2010 at 7:07 pm
गुरु बिन गति नाहिं… गुरु को नतमस्तक प्रणाम !
May 7th, 2010 at 8:30 pm
एक कलाकार का दुसरे कलाकार को बहुत ही सुन्दर नमन …
May 9th, 2010 at 6:33 pm
बहुत सुन्दर नमन! उम्दा प्रस्तुती!