कभी अजनबी सी कभी जानी पेहचानी सी, ज़िंदगी रोज़ मिलती है क़तरा-क़तरा…
आजादी ढूड रहा था शब्दों मै , कि एक अजनबी दोस्त ने रौशनी दी , अपने बच्चों कि हँसी मै है आजादी । शुक्रिया … बहुत कुछ मिलगया जो मेरे पास ही था ।
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