मैं पानी हूँ, पाँच तत्वों में एक कहानी हूँ। मैं बादलों में, मैं नदियों में, मैं धरती के नीचे छुपा पानी हूँ।
मैं ही बहता हूँ आप की नस-नस में, शरीर में 70% तक बसता हूँ। पृथ्वी की गोद में भी 71% बनके चमकता हूँ।
मैं ज़हर भी बनता हूँ, अगर तुम मुझे गंदा कर दो। मैं अमृत भी बनता हूँ, अगर तुम मुझे समझ कर बरतो।
मैं सुनता हूँ, मैं समझता हूँ, मैं सिर्फ़ बहता नहीं—कहता भी हूँ। मैं सेहत लाता हूँ… पर बीमारियाँ भी साथ में लाता हूँ—
हैजा, टाइफाइड, दस्त, हेपेटाइटिस, कैंसर तक को न्यौता दे जाता हूँ। क्यों? क्योंकि तुमने मुझे जाने बिना अपनाया!
तय तुम करोगे— मैं जीवन बनूँ… या विनाश? मैं दोस्त बनूँ… या बीमारी की तलाश?
जो मेरी कद्र करता है, मैं उसे तंदुरुस्ती देता हूँ। जो मुझे नजरअंदाज़ करता है, मैं उसकी ज़िंदगी से खेल जाता हूँ।
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“जल है तो कल है — लेकिन साफ़ जल है तो स्वस्थ कल है।”
हे कार्यकर्ता तुम ज्ञान गुन सागर, तुमरे काज से तिहुँ लोक उजागर। नेता के तुम सन्देश वाहक, जनता का कोई तुम पर है हक़। तुम हो वीर बिक्रम बजरंगी, सुमति निवार कुमति के संगी। विद्यावान गुनी अति चातुर, नेता काज करिबे को आतुर।
नेता चरित्र सुनिबे को रसिया, MLA सांसद मिनिस्टर मनबसिया। वोट मांग तुम इलेक्शन जितवा, बदले में तुम कछु नहीं पावा। चाटुकार आगे निकल जावा, सच्चा कार्यकर्त्ता वही रह जावा। भीम रूप धरि विपक्ष सँहारे, नेता जी के काज सवाँरे।
लाय सजीवन पार्टी बचाये, नेताजी हरषि उर लाए। नेता कीन्ही बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई। तुम उपकार व्यपारियन कीन्हा, नेता मिलाय राज पद दीन्हा। तुम्हरो मंत्र कॉरपोरेट माना, साम्राज्य बनाया सब जग जाना।
नेता राज छुपावन माहिर, कबहुँ न कियो किसी पर जाहिर। दुर्गम काज नेतन के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते। नेता दुआरे तुम रखवारे, होत ना आज्ञा बिनु पैसारे। सब नेता सुख लहैं तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहु को डरना।
आपन तेज सम्हारो आपै, राजनीती हाँक तै कापै। विपक्ष-पक्ष निकट नहि आवै, नेता संग जब तुम हो जावे। नासै रोग हरे सब नेतन पीरा, जपत निरंतर तुम हनुमत बीरा। संकट तै नेतन को तुमहि छुडावै, मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।
फिर भी ऊपर नेता राजा, तिनके काज सकल तुम साजा। और मनोरथ जो नेता लावै, सोई अमित जीवन फल पावै। चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा। जनता के भी तुम रखवारे, नेता संग तुम काज सवारे।
लोक रसायन तुम्हरे पासा, फिर भी नेतन के तुम दासा। तुम्हरे काम जनता को भावे, फिर भी नेता तुम्हे दूर भगावे। अंतकाल पार्टी को याद आती, तुम्हारी कृपा से चुनाव जीत जाती। संकट कटै मिटै सब नेतन की पीरा, जो सुमिरै तुमरा नाम बलबीरा।
जामवंत जब कथा सुनाई, तब हनुमंत जागे शक्ति आयी। तुम भी हो हनुमंत सरीके, जागो अब कहा पड़े हो नेतन की पी के। जनता की तो तुम ताकत हो, तुम नेता पीछे भागत हो। जनता से संवाद तुम्हारा, फिर भी नेता तुम्हे दुत्कारा।
लोकतंत्र के तुम रखवारे, जनता संग मिलजाओ प्यारे। कूटनीति तुम भी अपनाओ, आओ अब एक KOOTWORLD बनाओ। तुम जनता के मन को भावे, फिर नेता तुम्हारे पीछे आवे। अपनी छवी बिखेरो भारी, तुम हो भविष्य के नेता भावी।
दोहा सब के तुम संकट हरो, अब कार्यकर्त्ता से आगे बड़ो। जनता तुम्हारे साथ है, तुम अब खुद नेता बनो।
किसी भी पार्टी के कार्यकर्त्ता को यह लगता है की पार्टी कार्यकर्ताओं का शोषण करती है और काम निकलने के बाद उनका ध्यान नहीं रखती है, वो कार्यकर्त्ता इस चालीसे को पढ़कर हमसे संपर्क कर सकते है। और अपने स्वाभिमान की रक्षा कैसे करनी है फ्री में जान सकते है। www.yatishjain.com
धीरे धीरे वक्त गुज़रेगा,
इल्जामातों के दौर चलेंगे ,
एक दूसरे पर आरोप लगेंगे,
पब्लिक की प्रतिक्रिया होगी,
देश विदेश में सलाह मशवरा होगा,
राजनीती को एक और
मुद्दा मिल जायेगा,
समाचार कंपनियों को
कई दिनों के लिए
मसाला मिल जायेगा,
कुछ NGO का
काम बड़ जाएगा,
पूरी दुनिया
सबूतों और सुझावों का
बहुत बड़ा
आकड़ा तैयार करेगी,
बुद्धिजीवी बड़ी बड़ी
बहस करेंगे,
कानून और संविधान
में बदलाव होंगे,
कई नए घोटालों के लिए
बजट बनेंगे
सब लोग अपनी तरह से
अपनी रोटियां सकेंगे.
बस एक चीज है जो लोग
खुली आँख से भी
नही देखेंगे.
वों जो विश्व पर कलंक है,
जिसका किसी मज़हब में,
किसी शिक्षा मे
किसी संस्कार मे
किसी भी रूप मे
कोई स्थान नही है. आतंकवाद
क्या फायदा पड़े लिखे होने का
६०० साल पहले किसी ने सही कहा है.
पोथी पढ-पढ जग मुआ, पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय…