मै किसी नई डायरी मे नहीं लिखता था
डर होता था ख़राब हो जायेगी.
फिर कॉलेज मै एक दोस्त मिला,
उसने एक डायरी दी
और मेरी चलपड़ी लिखने की।
जब तक साथ था हर साल एक डायरी देता था,
फिर नजाने क्या हुआ
हम बिछड़ गए ।
सुना है आज वो PHD हो चुका है
डॉक्टर कहलाने लगा है,
पेंटिंग मै या आर्ट हिस्ट्री मै
मुझे ये भी पता नही,
विदेश भी पढ़के आया है
और यही कही दिल्ली मै रहता है।
आज मेरी फिर चल पड़ी है लिखने की।
आज मै ब्लोग पे लिख रहा हूँ,
पर महसूस करता हूँ
ये पन्ने उसी डायरी के है ।
दोस्तो कही मिले
तो पता देना उसे मेरा,
नाम है उसका
“ऋषी”
January 25th, 2011 at 11:25 am
What shall I say Yatish…Pintoo…my long lasting friend….I still regard u as my dear friend…my soulmate…aur woh daiary…humnay apko di thi…aur apney yaadein…di hain…which I still cherish…luv u Yatish….urs…Rishi
January 25th, 2011 at 12:37 pm
मैंने यह 3 साल 8 महीने पहले लिखा था,
दुनिया गोल है सब फिर से मिल जाते है,
भगवान का शुक्र है तुमने इसे ढूड लिया.
आज भी खरीदी हुई नई डायरी पर लिखने मै डर लगता है.
जब वह पुरानी हो जाती है तब लिखता हूँ.
शुक्रिया दोस्त
उम्मीद है सबकुछ ठीक ठाक होगा घर मे.
अंकल आंटी को मेरा याद करना कहना.