Mar 22
एक रौशनी की तलाश है
जिसे पकड़ कर जा सकूँ
उस विशाल प्रकाश की ओर
जहाँ सब कुछ है
उजला उजला,
जहाँ चल सकें हम
अपनी छाया के संग
अंधेरों में
पता ही नहीं चलता
कि कौन
किसकी छाया में है
कभी अजनबी सी कभी जानी पेहचानी सी, ज़िंदगी रोज़ मिलती है क़तरा-क़तरा…
एक रौशनी की तलाश है
जिसे पकड़ कर जा सकूँ
उस विशाल प्रकाश की ओर
जहाँ सब कुछ है
उजला उजला,
जहाँ चल सकें हम
अपनी छाया के संग
अंधेरों में
पता ही नहीं चलता
कि कौन
किसकी छाया में है
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March 22nd, 2010 at 3:13 pm
Oh my my!!
Short, crisp and brilliant!
Bahut sundar concept hai…
March 22nd, 2010 at 6:42 pm
Great poem, very nice 🙂
March 22nd, 2010 at 7:14 pm
Thanks rajivji for my photograph
March 22nd, 2010 at 8:45 pm
One more good one… short and precise…
HMMMM… so you are back again :)…
March 24th, 2010 at 6:19 pm
बहुत सुन्दर ब्लाग
हार्दिक शुभ कामनायें
April 3rd, 2010 at 3:30 pm
too good…