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वक़्त वक़्त की बात है,
एक वक़्त था कि लैंडलाइन फोन थे,
किसी से बात करने के लिए
घर या ऑफिस की जरुरत पड़ती थी।
आज वक़्त बेवक़्त भी कही से
किसी से भी बात कर सकते है।
रिश्ते दूर दूर हुआ करते थे
पर चिट्ठियां और एसटीडी काल
उन्हें पास ला दिया करते थे।
जो मजा उन कागज की चिट्ठियों में था
वो आज की ईमेल में कहाँ है?
जो घंटो इंतजार के बाद ट्रंकाल काल में था
वो आज के इंस्टेंट काल में कहाँ।
जब कही जाते थे तो सात दिन में
पोस्टकार्ड से पहुचने की खबर पहुचती थी
वो सात दिनों मे भरोसा होता था।
पर आज कही जाते है तो सात काल हो जाते है
इंतजार अब खबर बन गया है।
उस वक़्त दूरियों में
नजदीकियां बसती थी,
और आज हम नजदीक होकर भी
दूर हो गए है।
कहते है साइंस ने बहुत तरक्की की है
दुनिया को पास लादिया है
अगर इसे ही पास लाना कहते है
तो वो दूरियां ही अच्छी थी।
सात दिन लगते थे,
पर अपने, अपने लगते थे।

One Response to “वक़्त वक़्त की बात है”

  1. Narinder Verma Says:

    बहुत खूब 👌

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