तुम समीर बन आए
जल से मिलाये,
मै क्या कहूँ
समझ नहीं आता।
तुम भी जल
मै भी जल,
तुम नदी बन
समंदर में मिल गए;
मै अभी बह रहा हूँ,
इंतज़ार करना
जल्द मिलूँगा …
– यतीष जैन
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कभी अजनबी सी कभी जानी पेहचानी सी, ज़िंदगी रोज़ मिलती है क़तरा-क़तरा…
तुम समीर बन आए
जल से मिलाये,
मै क्या कहूँ
समझ नहीं आता।
तुम भी जल
मै भी जल,
तुम नदी बन
समंदर में मिल गए;
मै अभी बह रहा हूँ,
इंतज़ार करना
जल्द मिलूँगा …
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October 18th, 2021 at 5:42 am
Awesome poetry by Yatish ji…
Well done keep it up