अनेकान्तवाद की दृष्टि से हिंसा के मनोवैज्ञानिक रूप

मन-वचन की हिंसा को
लाइसेंस दे दिया अहिंसा का,
और हर हिंसा को बना लिया
विषय — ज्ञानमीमांसा का।

चिंतन करते हैं हिंसा पर,
जो हमने कभी की ही नहीं,
और जो बसती है मन में भीतर,
उसकी परतें जमी हुई कहीं।

पढ़कर पुस्तक, सुनकर लेक्चर,
क्या इसका दमन होगा?
हिंसा तो हमारी आदत है,
जैसे नशा — सिगरेट और शराब का।

अब इससे छुटकारा कहाँ,
कौन इसका डॉक्टर है?
जो भी इसका डॉक्टर है,
वो खुद इसका शिकार है।

अब मन-वचन की हिंसा
सारे समाज का भार है,
देखने में यह अदृश्य सही,
पर भीतर बड़ा प्रहार है।

मन में बसती है गहराई तक,
और करती है गुप्त प्रहार —
हिंसा अब कोई घटना नहीं,
यह बन चुकी है हमारा विचार।

*यतीष जैन* 
रिसर्च स्कॉलर 
प्रोफेसर विसुअल कम्युनिकेशन
9555551144
www.yatishjain.com 

*ANEKANT*
Social Empowerment and Research Foundation 
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मैंने ज़िंदगी को
लाइब्रेरी की तरह पढ़ा है।
मेरा रिसर्च पेपर काग़ज़ों पर नहीं—
किताबों में तो अतीत दफ़्न है।

मैं आज की बात करता हूँ,
लोग मुझे एकान्त से देखते हैं,
और मैं—
अनेकान्त में बसता हूँ।


यतीष जैन
रिसर्च स्कॉलर 
प्रोफेसर विसुअल कम्युनिकेशन
9555551144
www.yatishjain.com 

ANEKANT
Social Empowerment and Research Foundation 

मैं पानी हूँ,
पाँच तत्वों में एक कहानी हूँ।
मैं बादलों में, मैं नदियों में,
मैं धरती के नीचे छुपा पानी हूँ।

मैं ही बहता हूँ आप की नस-नस में,
शरीर में 70% तक बसता हूँ।
पृथ्वी की गोद में भी
71% बनके चमकता हूँ।

मैं ज़हर भी बनता हूँ,
अगर तुम मुझे गंदा कर दो।
मैं अमृत भी बनता हूँ,
अगर तुम मुझे समझ कर बरतो।

मैं सुनता हूँ, मैं समझता हूँ,
मैं सिर्फ़ बहता नहीं—कहता भी हूँ।
मैं सेहत लाता हूँ…
पर बीमारियाँ भी साथ में लाता हूँ—

हैजा, टाइफाइड, दस्त, हेपेटाइटिस,
कैंसर तक को न्यौता दे जाता हूँ।
क्यों?
क्योंकि तुमने मुझे जाने बिना अपनाया!

तय तुम करोगे—
मैं जीवन बनूँ… या विनाश?
मैं दोस्त बनूँ… या बीमारी की तलाश?

जो मेरी कद्र करता है,
मैं उसे तंदुरुस्ती देता हूँ।
जो मुझे नजरअंदाज़ करता है,
मैं उसकी ज़िंदगी से खेल जाता हूँ।

🌱 अब समय है जागने का।
🔍 पता करो — तुम्हारा पानी कैसा है?
🧪 सीखो मुफ्त में घर पर पानी की जाँच करना।
क्योंकि अधिकतर RO और फ़िल्टर—सिर्फ़ नाम के हैं।
अब लाओ स्मार्ट समाधान — सही ज्ञान के साथ।

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ANEKANT
Social Empowerment and Research Foundation
9555551144 

“जल है तो कल है — लेकिन साफ़ जल है तो स्वस्थ कल है।”

हे कार्यकर्ता तुम ज्ञान गुन सागर, तुमरे काज से तिहुँ लोक उजागर। 
नेता के तुम सन्देश वाहक, जनता का कोई तुम पर है हक़। 
तुम हो वीर बिक्रम बजरंगी, सुमति निवार कुमति के संगी। 
विद्यावान गुनी अति चातुर, नेता काज करिबे को आतुर। 

नेता चरित्र सुनिबे को रसिया, MLA सांसद मिनिस्टर मनबसिया। 
वोट मांग तुम इलेक्शन जितवा, बदले में तुम कछु नहीं पावा।  
चाटुकार आगे निकल जावा, सच्चा कार्यकर्त्ता वही रह जावा। 
भीम रूप धरि विपक्ष सँहारे, नेता जी  के काज सवाँरे। 

लाय सजीवन पार्टी बचाये, नेताजी हरषि उर लाए। 
नेता कीन्ही बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई।
तुम उपकार व्यपारियन कीन्हा, नेता मिलाय राज पद दीन्हा। 
तुम्हरो मंत्र कॉरपोरेट माना, साम्राज्य बनाया सब जग जाना।
 
नेता राज छुपावन माहिर, कबहुँ न कियो किसी पर जाहिर। 
दुर्गम काज नेतन के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते। 
नेता दुआरे तुम रखवारे, होत ना आज्ञा बिनु पैसारे। 
सब नेता सुख लहैं तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहु को डरना।

आपन तेज सम्हारो आपै, राजनीती हाँक तै कापै। 
विपक्ष-पक्ष  निकट नहि आवै, नेता संग जब तुम हो जावे। 
नासै रोग हरे सब नेतन पीरा, जपत निरंतर तुम हनुमत बीरा। 
संकट तै नेतन को तुमहि  छुडावै, मन क्रम वचन ध्यान जो लावै। 

फिर भी ऊपर नेता राजा, तिनके काज सकल तुम साजा। 
और मनोरथ जो नेता लावै, सोई अमित जीवन फल पावै। 
चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा। 
जनता के भी तुम रखवारे, नेता संग तुम काज सवारे।

लोक रसायन तुम्हरे पासा, फिर भी नेतन के तुम दासा। 
तुम्हरे काम जनता को भावे, फिर भी नेता तुम्हे दूर भगावे। 
अंतकाल पार्टी को याद आती, तुम्हारी कृपा से चुनाव जीत जाती। 
संकट कटै मिटै सब नेतन की पीरा, जो सुमिरै तुमरा नाम बलबीरा। 

जामवंत जब कथा सुनाई, तब हनुमंत जागे शक्ति आयी।  
तुम भी हो हनुमंत सरीके, जागो अब कहा पड़े हो नेतन की पी के। 
जनता की तो तुम ताकत हो, तुम नेता पीछे भागत हो।  
जनता से संवाद तुम्हारा, फिर भी नेता तुम्हे दुत्कारा। 

लोकतंत्र के तुम रखवारे, जनता संग मिलजाओ प्यारे। 
कूटनीति तुम भी अपनाओ, आओ अब एक KOOTWORLD बनाओ। 
तुम जनता के मन को भावे, फिर नेता तुम्हारे पीछे आवे। 
अपनी छवी बिखेरो भारी, तुम हो भविष्य के नेता भावी। 

दोहा 
सब के तुम संकट हरो, अब कार्यकर्त्ता से आगे बड़ो।
जनता तुम्हारे साथ है, तुम अब खुद नेता बनो। 

किसी भी पार्टी के कार्यकर्त्ता को यह लगता है की पार्टी
कार्यकर्ताओं का शोषण करती है और काम
निकलने के बाद उनका ध्यान नहीं रखती है,
वो कार्यकर्त्ता इस चालीसे को पढ़कर हमसे
संपर्क कर सकते है। और अपने स्वाभिमान
की रक्षा कैसे करनी है फ्री में जान सकते है।

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कहाँ है स्वतंत्र हम आज रो रही है भारत माता,
अपने ही लोगों का खुले आम क़त्ल हो जाता।
हिंदू सनातन कहते हो कहाँ के तुम हिंदू हो,
जो हो रहा अपनों के साथ उसके केंद्र बिंदु हो ।

सबका खून खौलता है,
तुम्हारा पानी हो जाता है ।
तुम्हारे सामने तुम्हारे भाई का,
सीना छलनी हो जाता है।

आकर मोहल्ले में तुम्हारे,
कोई अधिकार छीनता है।
तुममें ही है ग़द्दार,
आसानी से बीनता है ।

क्या करोगे झंडा उठाके,
डंडा तुममें पड़ चुका है।
अयोध्या भी चली गई,
अब क्या तुम्हारे पास बचा है ।

कहाँ हो स्वतंत्र तुम,
तुमसे वोट दिया नहीं जाता है ।
इसी लिये बंदर आके,
तुम्हारी रोटी खाता है ।

स्वतंत्रता स्वतंत्रता करके तुम,
अपने नक़्शे पर शरणार्थी बन जाओगे।
अगर आज तुम सब,
वोट देने की क़सम नहीं खाओगे।

आज़ादी का जश्न तभी सफल हो पाएगा,
100% वोट देकर लोकतंत्र जब आएगा।

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वसुधैव कुटुंबकम तुम कहते हो और किस कुटुंब में रहते हो,
अपने घर में साप पाल के दूध पिलाते रहते हो।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई तुम तो एक मानते हो,
हिंदू कितना पिसता है पड़ोस के देश में क्या तुम जानते हो ।

तुमने सबको मान दिया अपने घर स्थान दिया,
पर पड़ोसियों ने तुम्हारे भाइयों के साथ क्या किया।
उनका खून खौलता है तुम्हारा पानी हो जाता है,
जब कभी बंगला देश पाकिस्तान में अपनों घर जलाया जाता है।

उनकी राजनीति में सिर्फ़ उनकी जात को स्थान है,
हमारी राजनीतिक में हम ही उनके दलाल है।
उनके ऊपर यहां कुछ हो तो राहुल अखिलेश चिल्लाते है,
और वहाँ कुछ हो हम पर ये पहले बिल में छुप जाते है।

ममता दीदी की ममता भी घुसपैठियों पर बरसती है,
अपने देश की जनता अपने हक़ को तरसती है।
लालू के आलुओं ने हमेशा चुप्पी साधी है,
जब जब बंगला देश पाकिस्तान में हमारी हुई बर्बादी है।

केजरी की क्या कहे अब मोहम्मद केजीरिद्दीन बनना बाक़ी है,
मंदिरों को नहीं देता अनुदान पर वहाँ ख़ैरातों की झांकी है।
टैक्स भरे कोई और पलता कोई और है,
सनातनियों के खून में अब नहीं रहा कोई जोर है।

तुमरी हरकत देख के राम ने भी तुम्हारा छोड़ा हाथ है,
बजरंगबली भी जाएँगे और कृष्ण भी नहीं रहेंगे साथ है।
कब जागोगे जब तुम अपने नक़्शे पर तुम शरणार्थी बन जाओगे,
अगर आज तुम परदेश में अपनों के काम ना आओगे।

नेता तो अपने देश में अपनी रोटी सेकते है,
जब ज़रूरत होती है उनकी,
सिर्फ़ जुमले फेकते है ।

हम है परतंत्र नेता बन गये है आका हमारे,
लाना होगा अपने में से किसी को जो काम सवारे।
जो करे धर्म की रक्षा और देश निर्माण हमारा,
तभी होगा असली स्वतंत्रता दिवस हमारा ।

रिश्तों ने रंग बदला 
तो रंगो के रंग उड़ गये I
जो रगों में दौड़ता था 
वो सफ़ेद हो गया,
और जो सफ़ेद था 
उसमें रंग आ गये …
रंग मुबारक 

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तुम समीर बन आए 
जल से मिलाये,
मै क्या कहूँ
समझ नहीं आता।

तुम भी जल
मै भी जल,
तुम नदी बन
समंदर में मिल गए; 
मै अभी बह रहा हूँ, 
इंतज़ार करना 
जल्द मिलूँगा …
– यतीष जैन
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Kshamavani क्षमावाणी

रिश्तों में एहसास की गर्मी है 
तो रिश्ता जिन्दा है।
रिश्तों में आखों की शर्म है 
तो रिश्ता जिन्दा है।
रिश्तों में आपस की कदर है 
तो रिश्ता जिंदा है। 

पर आज रिश्तों में 
हिसाब आ गया है। 
आज रिश्तों में 
खिचाव आ गया है। 

जिंदगी अब भावों से नहीं 
भाव से चलती है 
जिंदगी की ट्रेन हर मोड़ पर 
पटरी बदलती है। 

आखों के पास का रिश्ता 
अब नज़र नहीं आता 
आखो से दूर है जो रिश्ता 
वही है भाता 

जिंदगी अब 
खेल हो गयी है,
रिश्तों की अहमियत 
बेमेल हो गयी है, 
कुछ कहा सुना हो 
माफ़ करना .
अपने मन मे मेरे लिए 
कुछ ना रखना ,
अपने से अपने को 
पहचान लो। 

जीवन मे वही होता है 
जो लिखा होता है ,
लिखने वाला भी कोई 
खुदा नहीं होता है ।
जिनवाणी में लिखा है,
तू खुदी का खुदा है। 
फिर तू क्यों 
दुसरों  से खफा है ।

जैसा करे है वैसा भरे है 
आने वाले समय से क्यों डरे है,
तेरा बोया तू खुद कटेगा ,
तेरा दुःख कोई नहीं बांटेगा। 
संभल जा। … 

तू अकेला है 
और अकेला ही रहेगा। 
तो डरना कैसा, सच बोल 
तेरी बात से ही है तेरा मोल। 

किसी का कुछ है मुझपर 
तो मांग लेना।

समय बलवान है सब दर्ज होता है 
अपने करे पर ही इंसान रोता है ।
पुराना हिसाब है जो, वो ख़त्म करता हूँ ,
गिले शिकवों का कर्ज भरता हूँ 

अब आगे का जिम्मेदार खुद बनता हूँ 
सबसे क्षमा सबको क्षमा करता हूँ ।

उत्तम क्षमा
मिच्छामि दुक्कडम 

— यतीष जैन 
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आइना

सामने मेरे वो है जो दिखता मेरे जैसा है,
मेरी आदतों में भी वो मेरे जैसा है.

वो हसीन है उम्मीदों से घिरा हुआ
सपनो से है उसका दिल भरा हुआ,
मै उसकी हर बात का क़ायल सा हो गया हूँ,
मै आज उसका आइना सा हो गया हूँ.

उसकी उड़ान आसमानो से परे है
उसके ख़ाब बदलो से घिरे है ,
मै उसके साथ हवा में खो गया हूँ,
मै आज उसका आइना सा हो गया हूँ .

उसकी आँखों में कई मंज़िले झलकती है
उसकी माथे की लाइनें रास्ते सी दिखती है,
मै उसके सफ़र में साथी सा हो गया हूँ
मै आज उसका आइना सा हो गया हूँ .

वो जहां भी जाता है वहाँ रास्ता बन जाता है
वो जहां भी रुकता है वो ही मुक़ाम हो जाता है ,
मै उसका मील का पत्थर सा हो गया हूँ,
मै आज उसका आइना सा हो गया हूँ .

वो जो बोले तो महफ़िल में समा बंध जाता है
उसके होंठों से जो झरे वो अम्रत हो जाता है,
मै उसकी वाणी का सानी सा हो गया हूँ ,
मै आज उसका आइना सा हो गया हूँ.

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