
कविता के तुम भाई हो
लेखों के तुम साँई हो,
गर खड़े हो गए मंच पर
तो समारोह के नाई हो।
वाद विवाद की दाई हो
ज्ञान का सागर हो
कला की गागर हो।
नाम तुम्हारा है कैलाश
वाणी मैं है मिश्री का वास,
एक बार जब मिले किसी से
बना देते वो लम्हा खास।
वक़्त वक़्त की बात है,
एक वक़्त था कि लैंडलाइन फोन थे,
किसी से बात करने के लिए
घर या ऑफिस की जरुरत पड़ती थी।
आज वक़्त बेवक़्त भी कही से
किसी से भी बात कर सकते है।
रिश्ते दूर दूर हुआ करते थे
पर चिट्ठियां और एसटीडी काल
उन्हें पास ला दिया करते थे।
जो मजा उन कागज की चिट्ठियों में था
वो आज की ईमेल में कहाँ है?
जो घंटो इंतजार के बाद ट्रंकाल काल में था
वो आज के इंस्टेंट काल में कहाँ।
जब कही जाते थे तो सात दिन में
पोस्टकार्ड से पहुचने की खबर पहुचती थी
वो सात दिनों मे भरोसा होता था।
पर आज कही जाते है तो सात काल हो जाते है
इंतजार अब खबर बन गया है।
उस वक़्त दूरियों में
नजदीकियां बसती थी,
और आज हम नजदीक होकर भी
दूर हो गए है।
कहते है साइंस ने बहुत तरक्की की है
दुनिया को पास लादिया है
अगर इसे ही पास लाना कहते है
तो वो दूरियां ही अच्छी थी।
सात दिन लगते थे,
पर अपने, अपने लगते थे।

चला था सफर में सोचा कर की सुरक्षित हूँ ,
मेरी सुरक्षा कहा कहाँ खर्च हो गयी पता ही न चला।
रिस्क पहले दिन से ही मेरे साथ थी घूघट में,
आज घूघट उठा दिया रिस्क से
बना लिया उसे अपना,
तो रिस्क ही बनगई सुरक्षित हमसफ़र
क़तरा-क़तरा …

जाना तो सभी को है
फिर आने के लिये।
दिन भर गरमाया
सूरज भी जाता है,
चाँद को जो
आना होता है
सितारों के साथ।
सबकी बारी होती है,
आज मेरी थी;
कल तुम्हारी;
और फिर मेरी,
जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…

संभावनाओ के बीज
उगाते है हम,
integrity जमी मिलजाए
और commitment का पानी
तो आसमा हमारा होगा।
enrollment में possibility
दिखाते है हम,
लोगो को opportunity दिख जाये
तो हवाओं का रुख
बदल जायेगा।
सबकी काबिलियत पे
ताली बजाते है हम ,
acknowledgment की
लडिया बनाते है हम,
हर किसी में
लीडर जागते है हम
क़तरा -क़तरा

आँख खुली तो सबसे पहली मुलाकात
एक रंग से हुई
और तब से
ये मुलाकातों का सिलसिला जारी है।
हम आये थे एक स्वच्छ – साफ़ – श्वेत
चेहरा लिए मन का,
रंगों ने दे दिए हमें अलग-अलग रूप, पेहचान,
ये रंग हैं वक्त के, व्यवहार के, व्यक्तित्व के।
हम जब भी कहीं देखते है,
एक नया रंग दिखता है।
ये चहरे है रंगों के
ये रंग है जिंदगी के।

फोटो ही तो जो याद दिलाते है
गुज़रे लम्हे एक फिल्म की तरह .
सबकुछ कितना fast rewind हो जाता है
आँख बंद करो तो .
एक-एक करेक्टर बोलने लगता है
कुछ echo sound में आवाजें सुनाई देने लगती हैं
कुछ गाने, कुछ संगीत .
फोटो जिन्दा हो जाता है ,
और जैसे ही आँख खुलती है
fast forward
हम आज में उसकी खुशबू ले रहे होते है
और ज़िन्दगी यू ही चलती रहती है
क़तरा-क़तरा

आखें पथरागयी है इंतजार मे
उन्होंने कहा था कल करूँगा.
ना कोई चिठ्ठी है, ना सन्देश
मुआ मोबाईल भी थक गया है
कहानिया सुन सुन के,
चेट पर हरी बत्ती जलती रहती है
चक्छु दोस होगया है मुझे
हरा, लाल दिखने लगा है
आज मन अंतर्मन की सुन रहा है
किसी ने कहा था ,
कल कभी नहीं आता
आज देख भी लिया,
कुछ कल के वादों की
वेटिंग भी ख़त्म हो गयी है
और ट्रेन जा चुकी है
कुछ का वजूद मिट गया है
और कुछ, कुछ ना कुछ की कगार पर है
मन करता है की
कैलाश पर चला जाऊ,
बर्फ की ठंडी चादर ओड़
एक कल बन जाऊ
जो कहता था
आज ही कर लो जो करना है
कल को किसने देखा है
जिंदगी आज में है क़तरा – क़तरा