हे कार्यकर्ता तुम ज्ञान गुन सागर, तुमरे काज से तिहुँ लोक उजागर।
नेता के तुम सन्देश वाहक, जनता का कोई तुम पर है हक़।
तुम हो वीर बिक्रम बजरंगी, सुमति निवार कुमति के संगी।
विद्यावान गुनी अति चातुर, नेता काज करिबे को आतुर।
नेता चरित्र सुनिबे को रसिया, MLA सांसद मिनिस्टर मनबसिया।
वोट मांग तुम इलेक्शन जितवा, बदले में तुम कछु नहीं पावा।
चाटुकार आगे निकल जावा, सच्चा कार्यकर्त्ता वही रह जावा।
भीम रूप धरि विपक्ष सँहारे, नेता जी के काज सवाँरे।
लाय सजीवन पार्टी बचाये, नेताजी हरषि उर लाए।
नेता कीन्ही बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई।
तुम उपकार व्यपारियन कीन्हा, नेता मिलाय राज पद दीन्हा।
तुम्हरो मंत्र कॉरपोरेट माना, साम्राज्य बनाया सब जग जाना।
नेता राज छुपावन माहिर, कबहुँ न कियो किसी पर जाहिर।
दुर्गम काज नेतन के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।
नेता दुआरे तुम रखवारे, होत ना आज्ञा बिनु पैसारे।
सब नेता सुख लहैं तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहु को डरना।
आपन तेज सम्हारो आपै, राजनीती हाँक तै कापै।
विपक्ष-पक्ष निकट नहि आवै, नेता संग जब तुम हो जावे।
नासै रोग हरे सब नेतन पीरा, जपत निरंतर तुम हनुमत बीरा।
संकट तै नेतन को तुमहि छुडावै, मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।
फिर भी ऊपर नेता राजा, तिनके काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो नेता लावै, सोई अमित जीवन फल पावै।
चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा।
जनता के भी तुम रखवारे, नेता संग तुम काज सवारे।
लोक रसायन तुम्हरे पासा, फिर भी नेतन के तुम दासा।
तुम्हरे काम जनता को भावे, फिर भी नेता तुम्हे दूर भगावे।
अंतकाल पार्टी को याद आती, तुम्हारी कृपा से चुनाव जीत जाती।
संकट कटै मिटै सब नेतन की पीरा, जो सुमिरै तुमरा नाम बलबीरा।
जामवंत जब कथा सुनाई, तब हनुमंत जागे शक्ति आयी।
तुम भी हो हनुमंत सरीके, जागो अब कहा पड़े हो नेतन की पी के।
जनता की तो तुम ताकत हो, तुम नेता पीछे भागत हो।
जनता से संवाद तुम्हारा, फिर भी नेता तुम्हे दुत्कारा।
लोकतंत्र के तुम रखवारे, जनता संग मिलजाओ प्यारे।
कूटनीति तुम भी अपनाओ, आओ अब एक KOOTWORLD बनाओ।
तुम जनता के मन को भावे, फिर नेता तुम्हारे पीछे आवे।
अपनी छवी बिखेरो भारी, तुम हो भविष्य के नेता भावी।
दोहा
सब के तुम संकट हरो, अब कार्यकर्त्ता से आगे बड़ो।
जनता तुम्हारे साथ है, तुम अब खुद नेता बनो।
किसी भी पार्टी के कार्यकर्त्ता को यह लगता है की पार्टी
कार्यकर्ताओं का शोषण करती है और काम
निकलने के बाद उनका ध्यान नहीं रखती है,
वो कार्यकर्त्ता इस चालीसे को पढ़कर हमसे
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January 8th, 2025 at 1:14 pm
अति सुन्दर प्रयास अगर आप चाहे तो आपकी इस रचना को अपने आगामी नाटक में जरुर शामिल करूंगा