Feb 26
लगता था
किसी की अंगुली पकड़कर
चल रहा हूँ.
रौशनी में आया
तो पता चला
की वो अंगुली नहीं
कुछ और था
और जिसे मै
पकड़ना समझ रहा था
दरअसल वो
पल पल का छूटना था;
उनसे
जिनसे मै जुड़ा हुआ था,
जुड़ा रहना चाहता था,
हमेशा ….
कभी अजनबी सी कभी जानी पेहचानी सी, ज़िंदगी रोज़ मिलती है क़तरा-क़तरा…
लगता था
किसी की अंगुली पकड़कर
चल रहा हूँ.
रौशनी में आया
तो पता चला
की वो अंगुली नहीं
कुछ और था
और जिसे मै
पकड़ना समझ रहा था
दरअसल वो
पल पल का छूटना था;
उनसे
जिनसे मै जुड़ा हुआ था,
जुड़ा रहना चाहता था,
हमेशा ….
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