कभी अजनबी सी कभी जानी पेहचानी सी, ज़िंदगी रोज़ मिलती है क़तरा-क़तरा…
आयीं है उम्मीदे आया है वक्त फिर दोहराने, आयी है दस्तक इन्साफ की और आयीं है रहें देखने अपने चाहने वालों की इन्साफ की डगर पे जीत-हार या उपहार
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