लगता था
किसी की अंगुली पकड़कर
चल रहा हूँ.
रौशनी में आया
तो पता चला
की वो अंगुली नहीं
कुछ और था
और जिसे मै
पकड़ना समझ रहा था
दरअसल वो
पल पल का छूटना था;
उनसे
जिनसे मै जुड़ा हुआ था,
जुड़ा रहना चाहता था,
हमेशा ….
आज हुई एक मुलाकात
कुछ-कुछ जाने पहचाने से,
बहुत सीनियर दिखते थे वो
बिजी थे,
कुछ बातें हुई
जाना एक दूसरे को
फिट उम्र पूछी उन्होंने मेरी
और तपाक से बोले
तुम मुझसे ४ महीने बड़े हो,
मै कुछ समझ नही पाया क्या कहूँ
सामने एक तजुर्बेकार
ज्यादा उम्र का दिखने वाला
एक इंसान बड़ी ही
आत्मीयता से
मुझसे बोल रहा था,
मै उनकी बातें
एक उम्मीद की तरह
सुन रहा था
और सोच रहा था
क्या होता है
बड़ा – छोटा
अपने अपने दरवाजों के पीछे
सब बड़े है,
सब बड़े है अपने अपने
दायरों में …
एक बात अजब सी है रौशन ऐ जिंदगी में
ये चलती रफ़्ता रफ़्ता पर तेज़ सी दिखती है
आते है पड़ाव इतने पर रुकते कहाँ है हम
कुछ छूट सा जाता है हम जोड़ते रहते है
हर राह पे मुश्किल कुछ तनहा सी मिलती है
ये चलती रफ़्ता रफ़्ता पर तेज़ सी दिखती है
मोहताज़ है हम कितने इस वक्त के आईने में
हमको हम ही दिखाते है हम देखते रहते है
धुंधली सी कही इसमे उम्मीद सी खिलती है
ये चलती रफ़्ता रफ़्ता पर तेज़ सी दिखती है
खुशियों के ख्वाब से ही अँधेरा भी रौशन है
उम्मीद के बिछोने में सब जागते रहते है
ख्वाबों की एक दुनिया दिन मे भी तो सजती है
ये चलती रफ़्ता रफ़्ता पर तेज़ सी दिखती है
आज कई इमेल
लिखने के तरीको के
बारे में सोचा
कुछ लिखे भी
कुछ सोये हुए वादों को
जगाने के लिए लिखे,
तो कुछ नए वादों को
पाने के लिए लिखे ,
पूरा दिन इधर उधर की
ताक-झाक में गया,
लोगों के ब्लॉग खगाले
कुछो पर अपने निशाँन छोड़े.
इंतजार किया
अपने इनबाक्स में
किसी एक उम्मीद का
जवाब तो नही आया
हाँ इमेल ज़रूर
बाउंस हो कर आ गया
उनके पते से,
सो उम्मीद जारी है
एक नए पते केलिए
एक नए
अपोइन्टमेन्ट के लिए