Mar 25
चहरे पे चेहरा
लगा कर घूम रहा हूँ
मै खुद को खुद से
छिपाकर घूम रहा हूँ .
मुद्दत हो गयी देखे
अपना अक्स,
ये कौन है सामने
मै हूँ या है कोई
और शक्स…
कभी अजनबी सी कभी जानी पेहचानी सी, ज़िंदगी रोज़ मिलती है क़तरा-क़तरा…
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March 25th, 2010 at 9:25 am
मै हूँ या है कोई
और शक्स…
Good lines, crisp and clear!
It reminded me of AKS song “chehre pe chehra, chadta hai chehra, chehra badalta hai chehra hi chalta hai…”
March 25th, 2010 at 9:27 am
Main Zindagi Ka Raaj Chipata Chala Gaya….
March 25th, 2010 at 10:48 am
यतीश भाई,
छोटा पेकेट बड़ा धमाका वाली बात है जो आपने लिखा है!
आफरीन….
March 25th, 2010 at 8:44 pm
Another good one sir… now daily we get some good lines to read 🙂
March 26th, 2010 at 5:20 pm
वाह अद्भुत सुन्दर रचना! लाजवाब! इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई!
May 6th, 2010 at 10:31 am
bahut sunder lines haa….भावो को अछे से दर्शाया हैं…aacha laga apka blog
March 25th, 2011 at 11:48 pm
यह तो आश्चर्य ही है. एक कम्प्यूटर में माहिर व्यक्ति से कविता और वह भी सीधे सीधे दिल को छूने वाली. अनूठा प्रयोग शब्दों का, बधाई और ढेर सारी शुभकामनयें.