May 30
एक दिन यूँ ही
ख्यालों की डोर थामे
निकलगया भरे आकाश मे,
भीग गया सपनों के बादल मे,
कुछ देर मे बादल छटे,
आसमां साफ हुआ,
डिम्पल पड़े थे
उम्मीदों के आकाश मे …
कभी अजनबी सी कभी जानी पेहचानी सी, ज़िंदगी रोज़ मिलती है क़तरा-क़तरा…
एक दिन यूँ ही
ख्यालों की डोर थामे
निकलगया भरे आकाश मे,
भीग गया सपनों के बादल मे,
कुछ देर मे बादल छटे,
आसमां साफ हुआ,
डिम्पल पड़े थे
उम्मीदों के आकाश मे …
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May 30th, 2010 at 4:17 pm
कुछ अलग सा-बढ़िया!
May 30th, 2010 at 8:30 pm
फोटो और कविता दोनों सुन्दर है …
May 31st, 2010 at 6:46 am
यतीश जी! बहुत बेहतरीन , सदैव की तरह…
May 31st, 2010 at 7:29 am
as always impressive and good
May 31st, 2010 at 10:00 am
photography and poem, both are really good
June 1st, 2010 at 10:27 pm
यतीश जी, आपकी रचना सुन्दर है …
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया !
August 25th, 2010 at 1:01 am
Poem and the photography have a watercolour feel to them. beautifully painted.