Jun 01
आओ एक खाब का सौदा करलें
हम अपने गमों को साथ-साथ जुदा करलें
वक्त के साथ-साथ धुल जायेंगे पुराने निशाँ
आओ नए सुखों को साझा करलें
रिश्ते बनते है बिगड़ते है पुराने होने के लिए
आओ इस मोड़ पे हम कुछ नया करलें
कभी अजनबी सी कभी जानी पेहचानी सी, ज़िंदगी रोज़ मिलती है क़तरा-क़तरा…
आओ एक खाब का सौदा करलें
हम अपने गमों को साथ-साथ जुदा करलें
वक्त के साथ-साथ धुल जायेंगे पुराने निशाँ
आओ नए सुखों को साझा करलें
रिश्ते बनते है बिगड़ते है पुराने होने के लिए
आओ इस मोड़ पे हम कुछ नया करलें
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June 1st, 2010 at 5:26 pm
अच्छी भावपूर्ण रचना.
June 1st, 2010 at 9:00 pm
रचना के लिए ज़बरदस्त … फोटो के लिए और भी ज़बरदस्त … और एक सवाल ? ऐसे फोटो लेते कहाँ है आप ???
June 2nd, 2010 at 7:31 am
good job don keep it up
June 2nd, 2010 at 11:44 am
अमित जी,
हर चीज़ फोटोग्राफिक है, बस देखने की नज़र होनी चाहिए. वैसे ये मेरे घर के पास ही डिस्ट्रिक पार्क, सफ़दर जंग एन्कलेव, दिल्ली की फोटो है . और रही दूसरे स्पोट की बात तो मै कहूँगा.
कभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…
धन्यवाद,
यतीष
June 3rd, 2010 at 6:45 pm
रिश्ते बनते है बिगड़ते है पुराने होने के लिए
आओ इस मोड़ पे हम कुछ नया करलें
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ बहुत लाज़वाब लगा मेहनत दिख रही है.रिश्तों की तो अमिट कहानी है टूट कर और भी तोड़ते हैं और मन को सालते हैं