आखें पथरागयी है इंतजार मे
उन्होंने कहा था कल करूँगा.
ना कोई चिठ्ठी है, ना सन्देश
मुआ मोबाईल भी थक गया है
कहानिया सुन सुन के,
चेट पर हरी बत्ती जलती रहती है
चक्छु दोस होगया है मुझे
हरा, लाल दिखने लगा है
आज मन अंतर्मन की सुन रहा है
किसी ने कहा था ,
कल कभी नहीं आता
आज देख भी लिया,
कुछ कल के वादों की
वेटिंग भी ख़त्म हो गयी है
और ट्रेन जा चुकी है
कुछ का वजूद मिट गया है
और कुछ, कुछ ना कुछ की कगार पर है
मन करता है की
कैलाश पर चला जाऊ,
बर्फ की ठंडी चादर ओड़
एक कल बन जाऊ
जो कहता था
आज ही कर लो जो करना है
कल को किसने देखा है
जिंदगी आज में है क़तरा – क़तरा
June 7th, 2012 at 7:06 pm
bhai yatish..tumhari kalam ki kya tareef karun..?suraj ko diya dikhana hoga…baharhaal kavita ko padh kar jehan ko ye gumaan jaroor hua,,,kahin tumne apni kalam ki ‘magic stick’ se lafzon ke ‘sitare’ bikherte hue kavita ke ‘aaine’ me mujhe hi to apna aksh nahin dikha dia???
June 7th, 2012 at 8:33 pm
My Dear Yatish,
I am really very impressed and fascinated by your multifaceted personality and qualities. You are indeed a very good poet who express his emotions and sentiments so very clearly and effectively.
May you succeed in all your activities and Endeavors.
It is indeed very nice to know you more & more.
June 8th, 2012 at 3:01 pm
Awesome Yatish!
This is a good poetry!
So very true and so very well said!
June 10th, 2012 at 2:20 am
Very well written sir, please share on the Laltain’s page! 🙂