धीरे धीरे वक्त गुज़रेगा,
इल्जामातों के दौर चलेंगे ,
एक दूसरे पर आरोप लगेंगे,
पब्लिक की प्रतिक्रिया होगी,
देश विदेश में सलाह मशवरा होगा,
राजनीती को एक और
मुद्दा मिल जायेगा,
समाचार कंपनियों को
कई दिनों के लिए
मसाला मिल जायेगा,
कुछ NGO का
काम बड़ जाएगा,
पूरी दुनिया
सबूतों और सुझावों का
बहुत बड़ा
आकड़ा तैयार करेगी,
बुद्धिजीवी बड़ी बड़ी
बहस करेंगे,
कानून और संविधान
में बदलाव होंगे,
कई नए घोटालों के लिए
बजट बनेंगे
सब लोग अपनी तरह से
अपनी रोटियां सकेंगे.
बस एक चीज है जो लोग
खुली आँख से भी
नही देखेंगे.
वों जो विश्व पर कलंक है,
जिसका किसी मज़हब में,
किसी शिक्षा मे
किसी संस्कार मे
किसी भी रूप मे
कोई स्थान नही है.
आतंकवाद
क्या फायदा पड़े लिखे होने का
६०० साल पहले किसी ने सही कहा है.
पोथी पढ-पढ जग मुआ, पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय…
December 12th, 2008 at 2:03 pm
बस एक चीज है जो लोग
खुली आँख से भी
नही देखेंगे.
वों जो विश्व पर कलंक है,
जिसका किसी मज़हब में,
किसी शिक्षा मे
किसी संस्कार मे
किसी भी रूप मे
कोई स्थान नही है.
आतंकवाद
चुनी हुई पंक्तियों एवं चुने हुवे वाक्यों में आप ने सब कुछ कह दिया.
लगता है कि बेहद प्रेरणा के क्षणों में आप ने इस काव्य की रचना की !!
— शास्त्री
— हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.
महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
March 2nd, 2010 at 4:00 pm
Bahut Badiya Lagi AAp ki yeh Rachna, Bilkul sahi kaha hai. Prem Karna to koi sirf Hindustaniyon se seekhe, Chot khaa kar bhi Dobara Gale Laga Lete Hain.