May 18
जब आँख खुली
मैं एक किरदार बन गया
इस दुनियां के रंगमंच का,
आये दिन रोल बदलते हैं
डायलॉग बदलते है,
कभी लड़ाई
तो कभी मनोरंजन,
रोना धोना भी
लगा रहता है.
आँखे जैसे एक
कैमरा हो गयी है;
जिसमें मैं
मुझी को देखता हूँ
इस नाटक में
रोज़ क़तरा-क़तरा