Mar 24
चाह कितनी तेज होती है
ना चेहरा देखा
ना बात की ,
पढ़ा कुछ अल्फाजों को
और छू गए दिल को,
एक लम्बी सॉँस ली
और सारा बदन सिहर गया.
ऐसा ही होता है
शब्दों का जादू
अच्छे लगे तो
सबकुछ अच्छा लगता है
बिन देखे
बिन जाने
कभी अजनबी सी कभी जानी पेहचानी सी, ज़िंदगी रोज़ मिलती है क़तरा-क़तरा…
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March 24th, 2010 at 10:17 am
good one yatish
March 24th, 2010 at 11:38 am
Nice composition…
It is tough to write about true aspects of life
and this talent you have … 🙂
March 24th, 2010 at 12:12 pm
thnx Dimple
ये सब तरंगें है जिसे दिमाग नजाने कैसे पकड़ लेता है. लोग धक्का मारते है, लिखने को कहते है और ये उतर जाती है कागज पर
you also hv that talent
आप जिस तरह लिखते हो, समझने वाले को निशब्द कर देते हो
March 25th, 2010 at 12:48 pm
क्या बात है भाई क्या बात है!
March 26th, 2010 at 5:21 pm
बहुत खूब लिखा है आपने! उम्दा रचना!
March 29th, 2010 at 10:12 am
उम्दा रचना!
I loved it ! short and sweat with some great sense of self realization !