द्रौण ने अर्जुन को बनाया, अर्जुन ने द्रौण को,
गुरू ने शिक्षा दी और मिशाल बनाई,
की गुरू तभी गुरू होता है
जब शिष्य उससे आगे निकल जाये,
कुछ उससे बड़ा कर दिखाये.
पर आज
कहाँ है ऐसे द्रौण
कहाँ है ऐसे अर्जुन
कहाँ है ऎसी कोख
जिनसे ये पैदा हो सके.
शिक्षा अब बाज़ार मे
बिकने वाली चीज हो गयी है,
काबिलियत
कागज़ पे लगा एक ठप्पा,
गले मे लटकता एक तमगा.
दुकाने सजी है गुरुओ की,
अब शिष्यों की भी.
गुरू अब गुरू नही पेड सर्वेंट हो गया है
शिष्य उसे जब चाहे बदलता है.
शिष्य अब शिष्य नही
भेदो के झुंड है,
जहाँ गुरुओं की संस्थाएं उन्हें चुनती है.
गुरू में गुरूर है अब
शिष्य में क्या शेष है अब
पता नही
शिक्षा अब उस भिक्षा की तरह है
जिसे कोई भी ले दे सकता है
पर इसमे कितनी सुशिक्षा है
सब जानते है.
सब कुछ बदल गया है
पर ये सच है
द्रौण और अर्जुन नही रहे
पर ये भी सच है
आज भी पैदा होते है
ऐसे लोग
जो बनते है अपने बुते पे,
सामने आदर्श का बुत रखके,
हां एकलव्य आज भी पैदा होते है

yatish_Merry-Christmas
खुशियों का
कोई दिन नही होता,
जब चाहे मनाओ,
पर फुरसत कहाँ है
इस दौड़ धुप में,
तभी तो उपरवाले ने
त्यौहार बनाये है
हर मौसम में,
होली, दिवाली, ईद
और अब लो
आ गया क्रिसमस. 
Merry  Christmas

  

uphaar_yatishjain
आयीं है उम्मीदे
आया है वक्त फिर दोहराने,
आयी है दस्तक इन्साफ की
और
आयीं है रहें देखने
अपने चाहने वालों की
इन्साफ की डगर पे
जीत-हार
या
उपहार

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diwali2007_yatishjain

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मै किसी नई डायरी मे नहीं लिखता था
डर होता था ख़राब हो जायेगी.
फिर कॉलेज मै एक दोस्त मिला,
उसने एक डायरी दी
और मेरी चलपड़ी लिखने की।
जब तक साथ था हर साल एक डायरी देता था,
फिर नजाने क्या हुआ
हम बिछड़ गए ।

सुना है आज वो PHD हो चुका है
डॉक्टर कहलाने लगा है,
पेंटिंग मै या आर्ट हिस्ट्री मै
मुझे ये भी पता नही,
विदेश भी पढ़के आया है
और यही कही दिल्ली मै रहता है।

आज मेरी फिर चल पड़ी है लिखने की।
आज मै ब्लोग पे लिख रहा हूँ,
पर महसूस करता हूँ
ये पन्ने उसी डायरी के है ।

दोस्तो कही मिले
तो पता देना उसे मेरा,
नाम है उसका
“ऋषी”

आजादी ढूड रहा था शब्दों मै ,
कि एक अजनबी दोस्त ने रौशनी दी ,
अपने बच्चों कि हँसी मै है आजादी ।
शुक्रिया …
बहुत कुछ मिलगया जो मेरे पास ही था ।

  

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