लगता था
किसी की अंगुली पकड़कर
चल रहा हूँ.
रौशनी में आया
तो पता चला
की वो अंगुली नहीं
कुछ और था
और जिसे मै
पकड़ना समझ रहा था
दरअसल वो
पल पल का छूटना था;
उनसे
जिनसे मै जुड़ा हुआ था,
जुड़ा रहना चाहता था,
हमेशा ….
बाजू में बंधी कुछ दुआएं
और हाथों में झूलती
कुछ उलझी हुयी सी
रंग बिरंगी कश्मकसें
कुछ कह रही थी आज,
बना रही यही
अपने अतीत की तस्वीरें
वर्तमान के केनवाश पर.
लाइने खिचने लगी
और बनगया
एक स्टोर रूम,
जिसमें थे नक्कासी किये
यादों के संदूक,
उजले-उजले से
कुछ आईने और
सुर्ख सफ़ेद पोशाकें.
वो बतियाती खिलखिलाती
और बस खो जाती
जैसे फरिश्तों के देश मे
एक नन्ही परी,
वो कमरा जैसे कमरा नहीं
एक सपनों की दुनिया हो
उजली सी,
वक्त गुजरा
देश छूटा
रूह से ज़ुदा हो गयी ज़िन्दगी,
बड़े-बड़े खुले से वीराने ;
ढूढने लगी अपनी ही पहचान,
ना कोई आइना, न कोई संदूक
बस मीलों दूर
सफ़ेद ही सफ़ेद
बिखरे हुए शून्य.
समय की सुई फिर आयी
अपनी जगह
लगा जैसे नया युग
फिर शुरू हुआ है,
ढूढने लगी उन नाजुक
नक्काशी भरे पलों को
की तभी पहचान लिया
किसी ने उसे
थामे हाथों में
कुछ बीते दिनों के
जिंदा एहसास.
वो मिली उससे तो
महक गया
एक आइना अतीत का
और खुलगया एक संदूक
एहसासों का,
जैसे सुबह की की दहलीज़ पर
सूरज की पहली किरण
जैसे पहली बारिश मे
भीगा बदन.
वो आज भी ढूढती है
उन बंद दरवाजों मे
घूमते फ़रिश्ते,
वो आज भी कैद है
उन चार दीवारों मे
बतियायी हुई सी.
जिस्म जवाँ होगया है मगर,
मन अभी भी है मुन्नी सा…
आज हुई एक मुलाकात
कुछ-कुछ जाने पहचाने से,
बहुत सीनियर दिखते थे वो
बिजी थे,
कुछ बातें हुई
जाना एक दूसरे को
फिट उम्र पूछी उन्होंने मेरी
और तपाक से बोले
तुम मुझसे ४ महीने बड़े हो,
मै कुछ समझ नही पाया क्या कहूँ
सामने एक तजुर्बेकार
ज्यादा उम्र का दिखने वाला
एक इंसान बड़ी ही
आत्मीयता से
मुझसे बोल रहा था,
मै उनकी बातें
एक उम्मीद की तरह
सुन रहा था
और सोच रहा था
क्या होता है
बड़ा – छोटा
अपने अपने दरवाजों के पीछे
सब बड़े है,
सब बड़े है अपने अपने
दायरों में …
धीरे धीरे वक्त गुज़रेगा,
इल्जामातों के दौर चलेंगे ,
एक दूसरे पर आरोप लगेंगे,
पब्लिक की प्रतिक्रिया होगी,
देश विदेश में सलाह मशवरा होगा,
राजनीती को एक और
मुद्दा मिल जायेगा,
समाचार कंपनियों को
कई दिनों के लिए
मसाला मिल जायेगा,
कुछ NGO का
काम बड़ जाएगा,
पूरी दुनिया
सबूतों और सुझावों का
बहुत बड़ा
आकड़ा तैयार करेगी,
बुद्धिजीवी बड़ी बड़ी
बहस करेंगे,
कानून और संविधान
में बदलाव होंगे,
कई नए घोटालों के लिए
बजट बनेंगे
सब लोग अपनी तरह से
अपनी रोटियां सकेंगे.
बस एक चीज है जो लोग
खुली आँख से भी
नही देखेंगे.
वों जो विश्व पर कलंक है,
जिसका किसी मज़हब में,
किसी शिक्षा मे
किसी संस्कार मे
किसी भी रूप मे
कोई स्थान नही है.
आतंकवाद
क्या फायदा पड़े लिखे होने का
६०० साल पहले किसी ने सही कहा है.
पोथी पढ-पढ जग मुआ, पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय…
एक बात अजब सी है रौशन ऐ जिंदगी में
ये चलती रफ़्ता रफ़्ता पर तेज़ सी दिखती है
आते है पड़ाव इतने पर रुकते कहाँ है हम
कुछ छूट सा जाता है हम जोड़ते रहते है
हर राह पे मुश्किल कुछ तनहा सी मिलती है
ये चलती रफ़्ता रफ़्ता पर तेज़ सी दिखती है
मोहताज़ है हम कितने इस वक्त के आईने में
हमको हम ही दिखाते है हम देखते रहते है
धुंधली सी कही इसमे उम्मीद सी खिलती है
ये चलती रफ़्ता रफ़्ता पर तेज़ सी दिखती है
खुशियों के ख्वाब से ही अँधेरा भी रौशन है
उम्मीद के बिछोने में सब जागते रहते है
ख्वाबों की एक दुनिया दिन मे भी तो सजती है
ये चलती रफ़्ता रफ़्ता पर तेज़ सी दिखती है
आज कई इमेल
लिखने के तरीको के
बारे में सोचा
कुछ लिखे भी
कुछ सोये हुए वादों को
जगाने के लिए लिखे,
तो कुछ नए वादों को
पाने के लिए लिखे ,
पूरा दिन इधर उधर की
ताक-झाक में गया,
लोगों के ब्लॉग खगाले
कुछो पर अपने निशाँन छोड़े.
इंतजार किया
अपने इनबाक्स में
किसी एक उम्मीद का
जवाब तो नही आया
हाँ इमेल ज़रूर
बाउंस हो कर आ गया
उनके पते से,
सो उम्मीद जारी है
एक नए पते केलिए
एक नए
अपोइन्टमेन्ट के लिए
आज मन ले गया कुछ नयी किताबों के बीच,
जहाँ नए सिद्धांतों के अम्बार लगे थे,
जो कह रहे थे नए ज़माने में सफल होने की तरकीबें .
एक पन्ना कह रहा था
बॉस पर विश्वास मत करो
वह कभी आपको आगे नही पहुँचायेगा
एक पन्ना कह रहा था
अपने हुनर का ज्यादा प्रदर्शन मत करो
छोटे बड़े सबको जलन होती है
एक पन्ना कह रहा था
लोगों को अपने ऊपर निर्भर बनाओ,
दूसरों के दिलो दिमाग पर काम करो,
दोस्तों पर विश्वास कभी मत करो,
अपने दुश्मन को जड़ से उखाड़ फेको.
लगा जैसे ये सब तो मै देख चुका हूँ,
पिछ्ले कुछ सालों में अपने आस-पास.
अब दिमाग चकरा गया ,
मेरे गुरुओं ने शिक्षा दी थी
चीजों को इतना आसान कर दो
कि कोई भी कह उठे
अरे यह तो मै भी कर लेता
किसी को मत काटो
बड़ा बनाना है तो
किसी लाइन के साथ बड़ी लाइन खीच दो
काम को सहज करो
अपना विचार दूसरों का बनादो,
लोगों को प्रोत्साहित करो.
अब असमंजस मै हूँ
किसे मानू इस गिरगिट की तरह
रंग बदलती दुनिया मे,
जहाँ कमेटमेन्ट नाम की
कोई चीज नही है
फ़िर वो कोई छोटे ओहदे वाला करे
या बड़े ओहदे वाला.
राजनीति क्या है
नीति के द्वारा राज करना या
राज करने के लिए अपनी नीति बनाना,
चाहे वो कैसी भी हो
नैतिक या अनैतिक
पता नही.
हाँ इतना ज़रूर पता है
की आज राजनीति का शाब्दिक अर्थ
सिर्फ़ राज रह गया है,
नीति का अर्थ
किसी भी तरीके से इसे हासिल करना है,
साम्प्रदायिकता फैले तो फैले
लोग मरते है तो मरे
वोट नही मरना चाहिए,
जो जिस मज़हब की दुहाई देता है
वो उसी का शोषण करता है,
“नेता” शब्द अब
उल्टा हो गया है “ताने”
ताने देना अपने विपक्षियोँ को,
और ताने खीचना वादों की
मतदाताओं के सामने.
पहले इस सब में
सेवा, समर्पण, सुशासन जैसी
भावना प्रधान होती थी,
पर सुना है आज
भावना लापता है
प्रधान जी के साथ….