एक है जो ख़त्म हो रही है;
“जिंदगी”
एक है जो बड़ रही है;
“उम्र”
एक जो बन रहे है; बिगड़ रहे है;
“रिश्ते”
एक है जो चल रहा है;
“वक़्त”
जिंदगी, उम्र, रिश्ते, वक़्त,
सब ताने-बाने है।
वो जो एक है ;
वो हम है।
जो हमेशा
एक और अकेले ही
रुखसत होंगे।
एक रौशनी की तलाश है
जिसे पकड़ कर जा सकूँ
उस विशाल प्रकाश की ओर
जहाँ सब कुछ है
उजला उजला,
जहाँ चल सकें हम
अपनी छाया के संग
अंधेरों में
पता ही नहीं चलता
कि कौन
किसकी छाया में है
सब कहते है
अच्छा काम करो,
कुछ नया सोचो,
एक मिशाल कायम करो.
बोस भी कुछ यही कहता है,
आप क्या बेहतर कर सकते हो…
पर
कुछ करने चलो
तो वही ढाक के तीन पात.
अच्छा करने को
प्रेरित करने वाले ही
दीवार बन जाते है,
मिशाल; मिशाइल की तरह
दिल को भेदती है और
एक गुबार उठता है,
एक आवाज आती है,
सब बातें किताबी है
और किताब बिकती है ,
बातों का क्या
बतियाते रहो…
आज कोई ख्वाब टूटा है कही
कही न कहीं सबके ख्वाब टूटते है
पर मन का इकतारा
बजाता रहता है एक धुन
बार बार जुड़ने की.
ये धुन कभी बंद नहीं होती
हम ही इकतारे के
दिए की तरह
मिल जाते है मिट्टी मे
पर ये तार ख्वाबो के
जुड़े रहते है कही न कही
आज हम से कल किसी और से …
आज ना रंग ख़रीदे
ना किसी पे डाले,
सब मुझे ही रंगते रहे,
दोपहर जब नहाया
तो कोई रंग ना था बदन पर
सब कच्चे थे,
मिलावटी थे…