नाम याद नहीं रहते
चेहरे बोलते है,
बोलती है उनकी परछाइयां ,
रोज़ कोई आता है
कोई चला जाता है,
ना जाने ये सिलसिला
कब से चालू है,
पर कोई अपनी
छाप छोड़ जाता है,
कोई याद रह जाता है,
दुनियां की इस भीड़ मे
क़तरा-क़तरा…
जो देखा वही पेश कर रहा हूँ ,
हुआ यूँ कि एक दोस्त ने बुलाया
अन्ना हजारे के अनसन पर,
मै पहुच गया
कुछ अच्छे शोट लेने के लिए,
Virtual Tour बनाना चाहता था,
पर जब मीडिया के माइकस ट्राईपोड पर
सुस्ता रहे थे,
लोगों के नारे वातावरण को झुमा रहे थे
बच्चों से लेकर बुड्डे गा रहे थे
कई बड़ी हस्तियाँ अन्ना के प्रति
अपना समर्थन जाता रही थी ,
नए युग कि एक नयी महक आ रही थी
कानो में एक जोशीला गीत सुनाई दिया
आखों ने कुछ और कैद करना शुरू किया
पैर वही थम गए
केमेरा अपने आप ही विडियो मोड़ पे आ गया
और फिर शुरु हो गया
नए शोट्स के इत्ताफकों का
नया सिलसिला क़तरा- क़तरा
सपनों की उड़ान बहुत ऊँची होती है
इतनी की हर उचाई छोटी पड़ जाती है
पर मन इसे देखना भूलता नहीं,
वो जाने अनजाने कोशिश करता रहता है ;
उसे पाने की
उसको जीने की,
बस एक कोशिश
क्यों की कोशिश से उसे कोई नहीं रोक सकता
चाहे वो छोटी ही क्यों ना हो.
दोस्तो इत्तफ़ाक़ भी बड़ी अजब चीज है ज़िन्दगी मे
हुआ यू की मै राजनाथ कामथ जी के ऑफिस गया
कुछ काम के सिलशिले मे,
सर काफी बिजी थे फोन काल्स मे,
मै बैठा बैठा उनके ऑफिस इधर उधर देखने लगा
उनके व्यक्तित्व के रंगों को निहारने लगा,
बस यही हुआ एक इत्तफाक
कैमरा मेरे साथ था
आँखे बहुत कुछ पढ़ने लगी
अंगुलिया फोकस पुल करने लगी
ना tripod था ना dolly
ना jib ना extra light,
फ़ोन पर बातों का सिलशिला लम्बा चला
और मेरा aperture भी पूरा खुला,
एक कांसेप्ट जो मे कब से सोच रहा था
आज उसका जन्म हुआ
एक पोट्रेट कुछ अलग तरह का.
ये राज आज खुल गया
ये काम आज से चल गया
दोस्तो आपकी दुआ रही तो
तो होते रागे ऐसे इत्तफ़ाक़
ज़िन्दगी भर क़तरा क़तरा…
ऊचाई पे पहुचने पे
नीचे कुछ नहीं दिखता,
सिर्फ गहरे घने साये रह जाते है.
जिसमे दफ़्न हो जाते है सारे अतीत,
रौशनी आती जाती रहती है कभी-कभी
जो छेड़ देती है कुछ अहसासों को,
मुरझाती सी
मुस्कराती सी.
ऊचाइयाँ भी खुश
गहराइयाँ भी खुश
बस यही चलता है
ज़िन्दगी भर
क़तरा-क़तरा…
आज किसी ने ईमेल मे कहा
पेहचाना !
पहचान तो लिया था .
मेल सात समुन्दर पार से था,
नाम के पीछे कुछ और लगा था .
सालों का फासला सेकंडों मे तय हुआ
यादों का एक श्वेत केनवास उभरा
और धीरज धरे सबकुछ रंगने लगा.
हम 1992 मे थे अब
जहाँ से शुरू हुआ था
रंगों की दुनिया का सफ़र…