May 23
आज किसी ने ईमेल मे कहा
पेहचाना !
पहचान तो लिया था .
मेल सात समुन्दर पार से था,
नाम के पीछे कुछ और लगा था .
सालों का फासला सेकंडों मे तय हुआ
यादों का एक श्वेत केनवास उभरा
और धीरज धरे सबकुछ रंगने लगा.
हम 1992 मे थे अब
जहाँ से शुरू हुआ था
रंगों की दुनिया का सफ़र…
May 23rd, 2010 at 2:16 pm
यादों का एक श्वेत केनवास उभरा
और धीरज धरे सबकुछ रंगने लगा — खूबसूरत भाव..
एक बार की पहचान सदा याद रहती है.. भूलती कहाँ है…
May 23rd, 2010 at 5:32 pm
jo aapne likha hai inn chandd panktiyon mein wo seedha dil pe asar karti hain…!! khoob kahi!!
Rgds,
Dimple
May 24th, 2010 at 10:05 am
Ajnabi Tum Jaane Pehchaane Se Lagte Ho…
Purani Yaadein aur woh Beete huve Pal…
Bhala Kaise Bhulaaye Ja Sakte hain…
Aapke Lagaye Huve Chitra Mein…
Deviyon Ke Chehare pe Bahut Udasi hai…
Jab Pehchaan Hi liya hai to Haste huve chehare lagao…
Yeh Bhi Khoob Rahi, Pehchaana…
May 24th, 2010 at 10:16 am
उमेश जी, भीड़ मे सब एक जैसे लगते है पर जाना-पेहचाना कही भी हो दिख जाता है, पेहचान मे आ जाता है.
May 24th, 2010 at 10:31 am
Real Photo hoti to shayad hum bhi woh chehara dekh lete